विनम्र भाव से कहा, माँ-बाप का कहना सभी मानते हैं, जैसी आज्ञा होगी, कहने में मुझे ऐतराज़ न होगा।
सासजी ने तृप्ति की साँस छोड़ी।
फिर बिल्लेसुर के पास पण्डित बुला लाईं। पण्डित ने शीघ्रबोध के अनुसार बनते हुए ब्याह की प्रशंसा की।
बिल्लेसुर श्रद्धापूर्वक मान गये। अगली लगन में ब्याह होना निश्चित हो गया, और सासजी की आज्ञा के अनुसार उन्हीं के यहाँ से ब्याह होने की बात तै रही।
शाम को एक लड़की ले आई गई और दीये के उजाले में बिल्लेसुर ने उसे देखा।
उन्हें विश्वास हो गया कि कहीं कोई कलङ्क नहीं। हाथ-पैर के अलावा उन्होंने उसका मुँह नहीं देखा।
उसकी अम्मा से देर तक बातचीत करते रहे। उन्हें ढांढस देकर गाँव की राह ली। रुपये मन्नी की सास को दे आये।
(17)
बिल्लेसुर गाँव आये जैसे क़िला तोड़ लिया हो। गरदन उठाये घूमने लगे।
पहले लोगों ने सोचा, शकरकन्दवाली मोटाई है। बाद को राज़ खुला। त्रिलोचन दाँत-काटी-रोटीवाले मित्र से मिले।
वहीं मालूम हुआ कि यह वही लड़की है, जिससे वह गाँठ जोड़ना चाहते थे। गाँव के रँडुओं और बिल्लेसुर से ज़्यादा उम्रवाले क्वारों पर ब्याह का जैसे पाला पड़ा।
त्रिलोचन ने बिल्लेसुर के खिलाफ़ जली-कटी सुनाते हुए गरमी पहुँचाई; कहा, "ब्राह्मण है! ––बाप का पता नहीं।
किसी भलेमानस को पानी पिलाने लायक़ न रहेगा।" लोगों को दिलजमई हुई।